Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

एबीजी शिपयार्ड घोटाला : पूँजीवाद अपने आप में ही भ्रष्टाचार का अन्तहीन चक्र है!

जब से मोदी सरकार आयी है तब से बैंक धोखाधड़ी की ख़बर बहुत आम-सी हो गयी है। ये धोखाधड़ी की घटनाएँ भी दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करती जा रही हैं। 2015 में विजय माल्या का नौ हज़ार करोड़ का घोटाला सामने आया था! 2018 में नीरव मोदी का चौदह हज़ार करोड़ का घोटाला सामने आया और अब 2022 में तेईस हज़ार करोड़ का घोटाला सामने आया है।

‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के बहाने मोदी ने की पूँजीपतियों के मन की बात

मोदी को वैसे भी अपने अधिकारों की बात करने वाले और जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले लोग फूटी आँख नहीं सुहाते। कुछ समय पहले मोदी ने ऐसे लोगों को ‘आन्दोलनजीवी’ और परजीवी तक कहा था। मानवाधिकारों से तो मोदी और उनकी पार्टी का छत्तीस का आँकड़ा रहा है। पहले ही देश के तमाम सम्मानित मानवाधिकार कर्मी फ़र्ज़ी आरोपों में सालों से जेलों में सड़ रहे हैं। अपने इस ताज़ा बयान से मोदी ने साफ़ इशारा किया है कि अधिकारों की बात करना ही अपने आप में राष्ट्र-विरोधी काम समझा जायेगा क्योंकि इससे राष्ट्र कमज़ोर होता है।

लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने के लिए बहिष्कार के ढिंढोरे के बीच चीन के साथ कारोबार का नया रिकॉर्ड!

मोदी सरकार के अन्धभक्त चीन के विरोध के नाम पर चीनी खिलौनों और झालरों के बहिकार का अभियान चीनी मोबाइल फ़ोन से सोशल मीडिया पर चलाते रहते हैं! लेकिन मोदी के “ख़ून में व्यापार है”, इसलिए मोदी सरकार चीन के साथ धुआँधार कारोबार बढ़ा रही है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इसमें चीन से भारत में होने वाले आयात का हिस्सा ही सबसे बड़ा है। चीन का भारत में बड़े पैमाने पर पूँजी निवेश भी जारी है।

बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी: संकटग्रस्त पूँजीवाद के भीतर लोभ-लालच, सट्टेबाज़ी और अपराध को बढ़ावा देने के नये औज़ार

हाल के वर्षों में भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में खाते-पीते लोगों के बीच बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके पैसे से पैसा बनाने की एक नयी सनक पैदा हुई है। इस सनक को बढ़ावा देने का काम इण्टरनेट, सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों ने किया है जिनमें लोगों को बिना मेहनत किये रातों-रात अमीर बन जाने के सब्ज़बाग़ दिखाये जाते हैं। इन विज्ञापनों में लोगों को बताया जाता है कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके वे बैंक और शेयर बाज़ार में किये गये निवेश के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा पैसा बना सकते हैं।

चीन का एवरग्रान्दे संकट : पूँजीवाद के मुनाफ़े की गिरती दर के संकट की अभिव्यक्ति

चीन के रियल एस्टेट बाज़ार में पैदा हुआ हालिया संकट पूँजीवाद की बुनियादी समस्या यानी लाभप्रभता के संकट का ही लक्षण है। इससे चीन की राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था को ‘कुछ विचलनों के साथ समाजवादी अर्थव्यवस्था’, या ‘किसी क़िस्म की संक्रमणशील अर्थव्यवस्था’ होने के चलते इसे आर्थिक संकटों से मुक्त मानने वाली धारणा निर्णायक तौर पर ध्वस्त हो गयी है। चीन की प्रमुख रियल एस्टेट कम्पनी एवरग्रान्दे के साथ अन्य रियल एस्टेट कम्पनियों का ब्याज़ भर सकने और लाभांश दे सकने की अक्षमता के चलते दिवालिया होने ने यह सिद्ध किया है कि चीन एक पूँजीवादी देश ही है, जिसकी संशोधनवादी सामाजिक फ़ासीवादी क़िस्म की पूँजीवादी राज्यसत्ता के कारण अपनी एक विशिष्टता है।

कोयले की कमी और बिजली संकट : साज़िश नहीं बल्कि पूँजीवाद में निहित अराजकता का नतीजा है

अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते से मीडिया में कोयले की कमी की वजह से बिजली के संकट की ख़बरें आना शुरू हो गयी थीं। उसके बाद दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बिजली के सम्भावित संकट पर सार्वजनिक बयान दिया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इस संकट से निपटने के लिए विशेष बैठकें बुलानी पड़ीं। उसके बाद कोल इण्डिया को निर्देश दिया गया कि अन्य क्षेत्रों को कोयले की आपूर्ति रोककर पूरे कोयले को बिजली उत्पादन में लगाया जाये। कोयला और बिजली के क्षेत्र से जुड़े तमाम विशेषज्ञ पहले से ही इस संकट के बारे में सरकार को आगाह कर रहे थे और इसके कारणों की चर्चा कर रहे थे।

मनरेगा मज़दूरों के बजट को खाती अफ़सरशाही

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून यानी मनरेगा की शुरुआत 2005 में हुई थी। इस योजना को शुरू करने का कांग्रेस का मक़सद था कि गाँव से शहर की ओर पलायन करती आबादी को किस तरह से गाँव में ही रोके रखा जाये और सामाजिक असन्तोष को फूटने से रोका जा सके। इसके लिए उन्होंने 100 दिनों के पक्के रोज़गार के नाम पर मनरेगा स्कीम चालू की थी। आज जब बेरोज़गारी अपने चरम पर है तो एक बहुत बड़ी आबादी बेरोज़गार होकर मनरेगा में रोज़गार पाने के लिए मशक़्क़त करती रहती है कि उन्हें मनरेगा में तो काम देर-सवेर थोड़ा बहुत मिल जाता है।

नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के तीस वर्ष

देश में एक ओर बढ़ता धार्मिक उन्माद, नफ़रत और ख़ौफ़ का माहौल और दूसरी ओर आसमान छूती महँगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी और बदहाली, ऐसा लगता है जैसे पूरे देश को क्षय रोग ने अपने शिकंजे में कस लिया है। सारी ऊर्जा, ताज़गी और रचनात्मकता पोर-पोर से निचोड़कर इसे पस्त और बेहाल कर दिया है। यह सच है कि भयंकर आर्थिक संकट के काल में जनता के आक्रोश को साम्प्रदायिकता की दिशा में मोड़ने और पूँजीपतियों का हित साधने के लिए फ़ासीवाद का उभार होता है लेकिन ऐसा नहीं है कि फ़ासीवादियों के सत्ता में आने से पहले सब कुछ भला-चंगा था।

मेहनतकश जनता के ख़ून-पसीने से खड़ी हुई सार्वजनिक परिसम्पत्तियों को पूँजीपतियों के हवाले करने में जुटी मोदी सरकार

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की फ़ासीवादी सरकार जनता को लूटने और पूँजीपतियों के हाथों लुटवाने के नित नये कार्यक्रम पेश कर रही है। नोटबन्दी हो या सार्वजनिक उपक्रमों की सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री हो; बढ़ती महँगाई हो या श्रम क़ानूनों की बर्बादी हो, हर मामले में हम यह देख सकते हैं कि “अच्छे दिनों” का नारा देकर सत्ता में आयी भाजपा ने मज़दूरों, ग़रीब किसानों और आम मेहनतकश जनता के जीवन को नारकीय हालात में धकेल दिया है।

डीज़ल, पेट्रोल और गैस से मोदी सरकार ने की बेहिसाब कमाई

पिछले क़रीब सात साल के अपने कार्यकाल में मोदी सरकार ने पेट्रोलियम के उत्पादों से सरकारी ख़ज़ाने में में क़रीब पच्चीस लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की कमाई की है। मगर उसके बाद भी उसका ख़जा़ना ख़ाली ही रह रहा है। सरकारी घाटा पूरा करने के नाम पर न केवल मुनाफ़ा देने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को औने-पौने दामों पर बेचकर हज़ारों करोड़ रुपये और बटोरे जा रहे हैं, बल्कि ओएनजीसी, एचएएल जैसी अनेक सरकारी कम्पनियों को लूटकर भीतर से खोखला कर द‍िया गया है।