Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव 2020 में फिर से आम आदमी पार्टी की जीत के मायने: एक मज़दूर वर्गीय नज़रिया

जिन्‍होंने भी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पूरे चुनाव अभियान को क़रीबी से देखा है, वह अच्‍छी तरह जानते हैं कि भाजपा के हिन्‍दुत्‍ववादी फ़ासीवाद के एजेण्‍डे के बरक्‍स, अरविन्‍द केजरीवाल ने कोई सही मायनों में सेक्‍युलर, जनवादी और प्रगतिशील एजेण्‍डा नहीं रखा था। उल्‍टे केजरीवाल ने ‘सॉफ़्ट हिन्‍दुत्‍व’ का कार्ड खेला। अपने आपको हिन्‍दू, हनुमान-भक्‍त आदि साबित करने में केजरीवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी। साथ ही, कश्‍मीर में 370 हटाने पर मोदी को बधाई देने से लेकर, जामिया और जेएनयू पर हुए पुलिसिया अत्‍याचार और शाहीन बाग़ और सीएए-एनआरसी-एनपीआर जैसे सबसे ज्‍वलन्‍त और व्‍यापक मेहनतकश आबादी को प्रभावित करने वाले प्रमुख मसलों के सवाल पर चुप्‍पी साधे रहने तक, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने मोदी-शाह-नीत भाजपा के कोर एजेण्‍डा से किनारा काटकर निकल लेने (सर्कमवेण्‍ट करने) की रणनीति अपनायी। तात्‍कालिक तौर पर, इस रणनीति का फ़ायदा आम आदमी पार्टी को मिला है।

मज़दूर-विरोधी नीतियों को धड़ल्ले से लागू करने में जुटी मोदी सरकार का पूँजीपतियों को नया तोहफ़ा!

श्रम क़ानूनों पर मोदी सरकार के हमले जारी हैं। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 20 नवम्बर को औद्योगिक सम्बन्धों पर श्रम संहिता (लेबर कोड ऑन इण्डस्ट्रियल रिलेशन्स) को मंज़ूरी दे दी है जिससे अब कम्पनियों को मज़दूरों को किसी भी अवधि के लिए ठेके पर नियुक्त करने का अधिकार मिल गया है। इसे फ़िक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेण्ट का नाम दिया गया है।

बेरोज़गारी की भयावह स्थिति : पहली बार देश में कुल रोज़गार में भारी कमी!

ऐसे में फ़ासिस्ट मोदी सरकार की पूँजीपतियों को बहुत ज़रूरत है ता‍िक राष्ट्रवाद और धार्मिक जुनून के नशे की खुराकें देकर बेरोज़गार मज़दूरों और युवाओं को एकजुट होने और लड़ने से रोका जा सके। फिलहाल वे अपने मंसूबों में कामयाब होते दिख रहे हैं। क्या इस देश के मज़दूर और नौजवान ऐसे ही चुपचाप बर्बादी की ओर धकेले जाते रहेंगे?

विकराल बेरोज़गारी : ज़ि‍म्मेदार कौन? बढ़ती आबादी या पूँजीवादी व्यवस्था?

पिछले 15 अगस्त को देश के 72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर से दहाड़ते हुए लम्बा-चौड़ा भाषण दिया और देश की “अल्पज्ञानी” जनता को ज्ञान के नये-नये पाठ पढ़ाये! इस बार माननीय प्रधानमंत्री जी ने ‘भारी जनसंख्या विस्फोट’ को लेकर विशेष चिन्ता भी ज़ाहिर की और उन्होंने जनता को ही इसके लिए ज़ि‍म्मेदार ठहराया।

प्रधानमंत्री अमेरिका जाकर घोषणा कर रहे हैं कि ‘भारत में सब चंगा सी!’ पर आम मेहनतकश जनता पर मन्दी की मार तेज़ होती जा रही है

मोदी सरकार और पूरा बिका हुआ पूँजीवादी मीडिया फ़र्ज़ी आँकड़ों और झूठे दावों का चाहे जितना धुआँ छोड़ ले, लगातार गहराते आर्थिक संकट को ढाँक-तोप कर रखना अब उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। एक तरफ़ रोज़ होते खुलासे उनके झूठ के ग़ुब्बारे को पंचर कर दे रहे हैं और दूसरी तरफ़ आम लोगों के जीवन पर बेरोज़गारी, महँगाई, क़दम-क़दम पर सरकारी और निजी कम्पनियों की बढ़ती लूट और डूबते पैसों की जो मार पड़ रही है वह उन्हें असलियत का अहसास करा रही है। इसी कड़वी सच्चाई से ध्यान भटकाने के लिए फ़र्ज़ी देशभक्ति के नगाड़े ख़ूब पीटे जा रहे हैं। हक़ीक़त यह है कि पूँजीवादी व्यवस्था पूरे विश्व में चरमरा रही है और वैश्विक आर्थिक मन्दी के मौजूदा दौर ने दुनिया के लगभग सभी देशों को चपेट में ले लिया है। भारत में फ़ासिस्ट मोदी सरकार की कारगुज़ारियों ने इस संकट को और भी गम्भीर बना दिया है। ‘मज़दूर बिगुल’ में हम लगातार इस आर्थिक संकट के अलग-अलग पहलुओं और इसके कारणों पर लिखते रहे हैं। इस लेख में गहराते आर्थिक संकट की तीन बड़ी अभिव्यक्तियों की पड़ताल की गयी है।

अभिजीत बनर्जी को नोबल पुरस्कार और ग़रीबी दूर करने की पूँजीवादी चिन्ताओं की हक़ीक़त

चाहे अमर्त्य सेन हों या अभिजीत बनर्जी, ये कभी निजीकरण-उदारीकरण की उन नीतियों के बारे में नहीं बोलते जिनके विनाशकारी परिणाम पूरी दुनिया में ज़ाहिर हो चुके हैं। अर्थशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित होने के बावजूद इन्हें यह नंगी सच्चाई नज़र नहीं आती कि पूँजीवादी व्यवस्था के टिके रहने की शर्त है मज़दूरों का शोषण और इसका अनिवार्य नतीजा है समाज के एक सिरे पर बेहिसाब दौलत और दूसरे सिरे पर बेहिसाब ग़रीबी। वे ग़रीबी के बुनियादी कारणों पर कभी चोट नहीं करते, वे पूँजीवाद और साम्राज्यवाद की लूट पर कभी सवाल नहीं उठाते। वे केवल ग़रीबी और उससे पैदा होने वाले असन्तोष की आँच कम करने के लिए ‘‘कल्याणकारी’’ योजनाओं की फुहार छोड़ने के के उपाय सुझाते रहते हैं।

गहरी आर्थिक मन्दी के सही कारण को पहचानो

मन्दी के कारण मज़दूरों की नौकरी छूट रही है, बेरोज़गारी और महँगाई बढ़ी है, परन्तु सरकार अपना पूरा ज़ोर लगा रही है कि पूँजीपतियों में निराशा न हो। मज़दूरों के लिए सरकार कोई नीति नहीं ला रही है। मोदी ने 15 अगस्त को मनमोहन सिंह की यह बात ही दोहरा दी है कि अमीरों को और अमीर बनाइये, उनकी जूठन से ग़रीबों के जीवन में भी समृद्धि आयेगी। हम यह जानते हैं कि समृद्धि नीचे से ऊपर ही जाती है, न कि ऊपर से नीचे की ओर।

अर्थव्यवस्था का संकट गम्भीरतम रूप में – पूँजीपतियों का मुनाफ़ा बचाने के लिए संकट का सारा बोझ मेहनतकशों की टूटी कमर पर

ऑटोमोबाइल उद्योग जो कुल विनिर्माण उद्योग का 40% हिस्सा है, उसकी बिक्री में लगभग एक साल से निरन्तर गिरावट हो रही है। यह कमी इस उद्योग के सभी हिस्सों में व्याप्त है अर्थात कार, ट्रक, स्कूटर, मोटरसाइकल, मोपेड, ट्रैक्टर सबकी ही बिक्री में तेज़ गिरावट आयी है। जुलाई के महीने को ही देखें तो सबसे बड़ी कार कम्पनी मारुति की घरेलू बाज़ार में बिक्री पिछले साल के मुक़ाबले 36% गिरी है। अन्य कम्पनियों का भी कमोबेश यही हाल है। नतीजा यह हुआ है कि इन कम्पनियों ने उत्पादन घटाना शुरू कर दिया है। कहीं कारख़ानों को कई-कई दिन के लिए बन्द किया जा रहा है, कहीं काम के घण्टे या शिफ़्टें कम की जा रही हैं। साथ ही इन कम्पनियों को कलपुर्जे आपूर्ति करने वाली इकाइयों को भी उत्पादन कम या बन्द करना पड़ रहा है। इसके चलते इन सब कारख़ानों में श्रमिकों की छँटनी चालू हो गयी है। ख़ुद ऑटोमोबाइल उद्योग संघ के अनुसार 10 लाख श्रमिकों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ सकता है। उधर इनकी बिक्री करने वाले डीलरों की स्थिति भी ख़राब है। इसी साल लगभग 300 डीलरों ने अपना कारोबार बन्द कर दिया है। जो अभी चालू भी हैं वहाँ भी 15-20% श्रमिकों की छँटनी की ख़बर है। इस तरह 30 हज़ार से अधिक मज़दूर बेरोज़गार हो चुके हैं और यह तादाद अभी और बढ़ने ही वाली है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में भीषण मन्दी से लाखों लोगों का रोज़गार छिन सकता है

पाँच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के कानफाड़ू शोर के बीच असली सच्चाई यह है कि देश की अर्थव्यवस्था मन्दी की गहरी खाई में गिरती जा रही है। पूँजीपतियों के मुनाफ़े की गिरती दर को बनाये रखने के लिए जनता को तबाही-बर्बादी के नरककुण्ड में धकेलकर उसके ख़ून-पसीने की कमाई से अरबों रुपये के ‘बेल-आउट पैकेज’ पहले ही पूँजीपतियों को दिये जा चुके हैं, लेकिन फिर भी अर्थव्यवस्था को दिवालिया होने से बचाने के सारे नुस्खे नीमहकीमी साबित हो रहे हैं। मन्दी की सबसे बुरी मार ग़रीब मेहनतकश आबादी पर पड़ रही है। महँगाई, बेरोज़गारी, छँटनी, तालाबन्दी सुरसा की तरह मुँह खोले आम आबादी को निगलने पर अमादा है।

जी हां, प्रधानमन्‍त्री महोदय! हम समृद्धि पैदा करने वाले लोगों का सम्‍मान करते हैं! लेकिन ये आपके पूंजीपति मित्र नहीं हैं!

अपने इस भाषण में प्रधानमन्‍त्री महोदय देश में अमीरों के प्रति बढ़ते गुस्‍से से काफ़ी चिन्तित दिखे! उन्‍हें लग रहा था कि मन्‍दी के कारण रोज़गार से खदेड़े जा रहे मज़दूर और नौजवान कहीं इसका कारण अमीर पूंजीपतियों को न समझ बैठें! ये बेचारे पूंजीपति तो खुद ही गिरते मुनाफ़े से बिलबिला रहे हैं और उन चूंटों-माटों की तरह भगदड़ मचाये हुए हैं, जिन पर गर्म तेल गिर गया हो! ऊपर से हम निकम्‍मे-नाकारे और बेग़ैरत ग़रीब लोग! इन्‍हीं ”मेहनती” अमीर पूंजीपतियों पर, इन ”समृद्धि पैदा करने वालों” पर त्‍यौरियां चढ़ा रहे हैं? बड़े निर्लज्‍ज किस्‍म के कृतघ्‍न लोग हैं हम लोग!