क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला – 14 : बेशी मूल्य का उत्पादन
यह मज़दूर वर्ग के अन्दर राजनीतिक चेतना के विकास और समाज के सांस्कृतिक व सभ्यता-सम्बन्धी विकास पर निर्भर करता है कि मज़दूर वर्ग अपने इस अधिकार के लिए किस तरह और कब लड़ता है। निश्चित तौर पर, ये दोनों कारक स्वयं ऐतिहासिक वर्ग संघर्ष पर निर्भर करते हैं। मज़दूर वर्ग जिस हद तक अपने आपको एक राजनीतिक वर्ग के रूप में, यानी सर्वहारा वर्ग के रूप में तब्दील कर पाता है, वह जिस हद तक अपने वर्ग के साझा हितों के प्रति सचेत हो पाता है, वह जिस हद तक समूचे पूँजीपति वर्ग को अपने शत्रु के तौर पर पहचान पाता है और वह किस हद तक पूँजीवादी राज्यसत्ता को समूचे पूँजीपति वर्ग के नुमाइन्दे के तौर पर देख पाता है, इसी से तय होता है कि वह कार्यदिवस की लम्बाई को कम करने की माँग को कैसे सूत्रबद्ध कर पाता है और किस तरह से उसके लिए लड़ पाता है। मार्क्स स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि किसी भी समाज में संस्कृति और सभ्यता के स्तर और उसमें मज़दूर वर्ग की राजनीतिक वर्ग चेतना के स्तर के आधार पर ही मज़दूर वर्ग अपने वर्ग संघर्ष को संगठित करता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसी प्रक्रिया में उसकी वर्ग चेतना भी उत्तरोत्तर उन्नत होती है।