हिण्डेनबर्ग रिपार्ट से उजागर हुआ कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला
उनकी कामयाबी के पीछे भाँति-भाँति की लूट-खसोट छिपी होती है। बैंकों व वित्तीय संस्थाओं में जमा जनता की बचत को ये क़र्ज़ों के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपनी पूँजी बढ़ाते हैं। इस पूँजी से कच्चा माल, मशीनें और श्रम-शक्ति ख़रीदते हैं। सरकार से अपनी क़रीबी का फ़ायदा उठाते हुए ये औने-पौने दामों पर ज़मीन, लाइसेंस व विभिन्न प्रकार के ठेके हासिल करते हैं। उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान मज़दूरों के श्रम को लूटकर ये मुनाफ़ा कमाते हैं। उसके बाद जब कर देने की बारी आती है तो सरकार पर दबाव बनाकर करों में ज़बर्दस्त छूट हासिल करते हैं जिससे आम मेहनतकश जनता पर बोझ बढ़ता है और उसकी आमदनी और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट होती है। इस अपार लूट से भी जब इन लुटेरों को सन्तोष नहीं होता तो वे भाँति-भाँति की तिकड़मों के ज़रिए स्टॉक क़ीमतों व बही-खाते में हेराफेरी करके अपनी लूट के पहाड़ को और ऊँचा करने से भी नहीं चूकते हैं।