Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

स्वतंत्र पत्रकारिता पर हो रहे फ़ासीवादी हमलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाओ!

बीते दिनों न्यूज़क्लिक व न्‍यूज़लॉण्‍ड्री के दफ़्तर पर आयकर विभाग की छापेमारी हुई। कहने को तो आयकर विभाग इन न्यूज़ चैनलों के यहाँ “सर्वे” के लिए पहुँचा था लेकिन यह कैसा सर्वे था जिसमें आयकर विभाग इन न्यूज़ चैनलों की वित्तीय रिपोर्ट निकालने के बजाय वहाँ काम कर रहे लोगों के फ़ोन और लैपटॉप ज़ब्त कर रहा था? उनकी निजी जानकारियाँ इकट्ठा कर रहा था?

“माननीयों” के मुक़दमे साल-दर-साल लम्बित क्‍यों?

अभी हाल ही में विधायकों के लम्बित मामलों पर कुछ ख़बरें आयीं। सीबीआई ने विभिन्न लम्बित मामलों और जाँचों के तहत 19 अगस्त को एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है। जिसमें ख़ास बातें इस प्रकार हैं :

पेगासस : जनान्दोलनों के दुर्ग में सेंधमारी के लिए पूँजीवादी सत्ताओं का नया हथियार

मोदी सरकार भी अपनी सुरक्षा और अपने आसपास से लेकर जनता को संगठित करने वाले सभी के बारे में सब कुछ जान लेना चाहती है। इसलिए पेगासस पर पानी की तरह पैसा बहा कर मोदी सरकार जनाक्रोश के आने वाले सैलाब पर नियंत्रण करना चाहती है ताकि उसकी सुरक्षा दुरुस्त हो जाये और डरी-डरी बेचैन नींद उड़ी रातों से थोड़ी राहत मिले। यहाँ के भारी भरकम ख़र्चीले ख़ुफ़िया तंत्र और गली-गली में बैठे इनके भक्त निश्चित ही पर्याप्त नहीं थे इसलिए अपने सबसे पक्के यार से मदद माँगी गई।

देश के सभी ‘अर्बन नक्सलों’ से एक ‘अर्बन नक्सल’ की कुछ बातें

अब इस बात में संशय का कोई कारण नहीं है कि यह फ़ासिस्ट सत्ता उन सभी आवाज़ों का किसी भी क़ीमत पर गला घोंट देना चाहती है जो नागरिक आज़ादी और जनवादी अधिकारों के पक्ष में मुखर हैं। भीमा कोरेगाँव षड्यंत्र मुक़दमा उसी साज़िश की अबतक की सबसे ख़तरनाक कड़ी है।

जनता के व‍िरोध और आन्दोलनों को कुचलने के लिए हरियाणा सरकार का नया काला क़ानून “सम्पत्ति क्षति वसूली क़ानून – 2021”

इस क़ानून का असली मकसद सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनान्दोलनों को निशाना बनाना है!
हरियाणा भाजपा-जजपा की ठगबन्धन सरकार ने 18 मार्च को विधानसभा में ‘सम्पत्ति क्षति वसूली विधेयक – 2021’ नामक विधेयक पेश किया था। विधानसभा में भाजपा-जजपा का बहुमत होने के कारण विधेयक बिना किसी व्यवधान के पारित भी हो गया था। उसके बाद इसे राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य की मुहर लगवाने के लिए उनके पास भेजा गया। राज्यपाल ने विधेयक को अप्रैल में ही मंज़ूरी दे दी थी। इसके बाद 26 मई को हरियाणा प्रदेश में इस विधेयक को क़ानून के तौर पर लागू कर दिया गया।

जो सच-सच बोलेंगे, मारे जायेंगे!

भारत में अप्रैल और मई के महीनों में कोरोना महामारी का जो ताण्डव चला वह देश के इतिहास में सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक के रूप में दर्ज किया जायेगा। इस महामारी को एक त्रासदी बनाने में देश की फ़ासीवादी भाजपा सरकार, उसके मंत्रियों और चेले-चपाटों की घोर मानवद्रोही भूमिका भी इतिहास के पन्नों पर ख़ूनी अक्षरों में लिखी जायेगी। इनकी एक-एक करतूत और अपराध का समय आने पर गिन-गिन कर हिसाब लिया जायेगा, सब याद रखा जायेगा। मौत की इस विभीषिका ने हमसे हमारे प्रियजन हमारे दोस्त छीन लिये और पूरा देश शोक में डूब गया।

भारतीय राज्यसत्ता द्वारा बस्तर में क़त्लेआम जारी…

राज्यसत्ता द्वारा छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में पिछले दो दशक से जारी बर्बर खूनी दमन में एक नया अध्याय बीते 17 मई को जोड़ा गया। उस दिन सुकमा जिले के सिलगर गाँव के पास नव स्थापित शिविर के ख़िलाफ़ शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों के ऊपर सुरक्षा बलों ने अन्धाधुन्ध गोलीबारी की, जिसमें आधिकारिक तौर पर 3 लोग मारे गये और 16 ज़ख़्मी हुए। मारे गये ग्रामीणों की पहचान तीमापुरा के उईका पांडु, गुंडम के भीमा उर्सम और सुडवा गाँव के कवासी वागा के रूप में हुई है।

म्यांमार में बर्बर दमन के बावजूद सैन्य तानाशाही के ख़ि‍लाफ़ उमड़ा जनसैलाब

गत 1 फ़रवरी को म्यांमार में एक बार फिर सेना ने तख़्तापलट करके शासन-प्रशासन के समूचे ढाँचे को अपनी गिरफ़्त में ले लिया। वहाँ की निर्वाचित ‘स्टेट काउंसलर’ आंग सान सू की और उनकी पार्टी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया और एक साल के लिए देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।

योगीराज में उत्तर प्रदेश पुलिस की बेलगाम गुण्डागर्दी

अराजकता, असामाजिक तत्त्व, आतंकवादी गतिविधि…इन शब्दों का सहारा लेकर जनता पर काले क़ानूनों का शिकंजा कसना, सत्ता में आने के बाद से ही योगी सरकार का पुराना रवैया रहा है। अभी पिछले साल इन्होंने बिकरू काण्ड के बाद से जनवरी में पहली बार राज्य की राजधानी लखनऊ में पुलिस कमिश्नरेट लागू किया। और उसके बाद अभी फिर से दोबारा पिछले हफ़्ते योगी सरकार ने दावा किया कि वह राज्य के अन्य दो शहरों वाराणसी और कानपुर में भी यही व्यवस्था लागू करेगी। और हुआ भी यही।

क्या हिरासत में होने वाली यातनाओं को रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे पर्याप्त हैं ?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच ने देश भर के राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी (एनआईए), केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), राजस्व ख़ुफिया निदेशालय (डीआरआई), नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) आदि जैसी सभी जाँच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश जारी किया है। कोर्ट का आदेश है कि इन कैमरों में नाइट विजन व रिकॉर्डिंग उपकरण भी लगे हुए हों। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इस क़दम से हिरासत में होने वाले उत्पीड़न पर क़ाबू पाया जा सकेगा।