Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

मालिकों के शोषण का शिकार जीएस ऑटो इण्टरनेशनल के मज़दूर

इस कारख़ाने के मज़दूरों से सख़्त मेहनत का काम लिया जाता है, लेकिन पैसा बहुत कम दिया जाता है। उन्हें आठ घण्टे काम के सिर्फ़ सात-साढे़ हज़ार रुपये दिये जाते हैं। यहाँ तक कि जो मज़दूर 20-20, 25-25 वर्ष से काम कर रहे हैं, उन्हें भी इससे अधिक पैसे नहीं मिलते। स्त्री मज़दूरों को तो सिर्फ़ 4500 रुपये महीना वेतन ही दिया जाता है। बहुत-सी स्त्री मज़दूरों ने कम वेतन के कारण इस कम्पनी की नौकरी से ही तौबा कर ली। इस तरह स्पष्ट है कि श्रम क़ानूनों के मुताबिक़ न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता। मैनेजमेण्ट मज़दूरों से ओवरटाइम काम तो लेती है, लेकिन जब ओवरटाइम का पैसा देने की बात आती है, तो कह दिया जाता है कि अभी नहीं मिलेगा। अकसर ओवरटाइम  के पैसों की अदायगी लटका दी जाती है।

गोबिन्द रबर लिमिटेड, लुधियाना के मज़दूर संघर्ष की राह पर

तीन यूनिटें बन्द करके न सिर्फ़ 1500 से अधिक मज़दूरों को बेरोज़गार कर दिया गया और उनका चार-चार महीने का वेतन रोककर रख लिया गया है, बल्कि अक्टूबर 2017 से कम्पनी मालिक मज़दूरों का ईपीएफ़़ और ईएसआई का पैसा भी खा गये हैं। करोड़ों के इस घोटाले की तरफ़ श्रम विभाग व पंजाब सरकार दोनों ही आँखें मूँदकर बैठे हैं। क्यों? इसके बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की सिर्फ़ बातें की जाती हैं, जबकि वास्तव में इसे बढ़ावा ही दिया जा रहा है और पंजाब सरकार व श्रम विभाग की इसमें भागीदारी है।

नोएडा में सैम्संग के नये कारख़ाने से मिलने वाले रोज़गार का सच

मोदी ने फैक्ट्री का उद्घाटन करते हुए बड़े ज़ोर-शोर से दावा किया कि यह कारख़ाना ‘मेक इन इंडिया’ की सफलता की मिसाल है और इससे हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा। नई फैक्ट्री से कितने लोगों को रोज़गार मिला यह तो अभी पता नहीं लेकिन सैम्संग कैसा रोज़गार दे रही है, यह जानना ज़रूरी है। नोएडा कारख़ाने में 1000 से अधिक ठेके के मज़दूर हैं जिन्हें 12-12 घण्टे काम करने के बाद न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिलती।

उत्तराखण्ड मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के पहले चरण की शुरुआत

देश की 46 करोड़ मज़दूर आबादी में 43 करोड़ मज़दूर बिना किसी क़ानूनी और सामाजिक सुरक्षा के असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आज सरकारी और अर्द्धसरकारी विभागों में भी दैनिक संविदा और ठेके के तहत कर्मचारियों को रखा जा रहा है जिनके ऊपर हमेशा छटनी की तलवार लटकी रहती है। जबकि सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह सभी कार्य कर सकने वाले नागरिकों को स्थायी रोज़गार को गारण्टी दे।

नोएडा की एक्सपोर्ट कम्पनियों में मज़दूरों की बदतर हालत

तमाम बुर्जुआ अर्थशास्त्री और सरकारी भोंपू जिन श्रम क़ानूनों को देश की आर्थिक प्रगति की राह का रोड़ा बताते रहते हैं उनकी असलियत जानने के लिए राजधानी से सटे औद्योगिक महानगर नोएडा में मज़दूरों की हालत को देखना ही काफ़ी है। राजधानी दिल्ली के बगल में स्थित नोएडा देश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में से एक है। यहाँ सैकड़ों अत्याधुनिक फ़ैक्टरियों में लाखों मज़दूर काम करते हैं। इन फ़ैक्टरियों में मज़दूरों का शोषण और उत्पीड़न कोई नयी बात नहीं है। मगर हाल के दिनों में विभिन्न एक्सपोर्ट कम्पनियों में मज़दूरों के साथ होने वाली बदसलूकी बढ़ती जा रही है जिसके कारण मज़दूरों में मालिकों के ख़िलाफ़ आक्रोश भी गहराता जा रहा है। इन कम्पनियों में काम कर रही महिलाओं की हालत तो और भी बदतर तथा असहनीय है।

गोरखपुर में फ़र्टिलाइज़र कारख़ाने का गोरखधन्धा

सवाल यह उठता है कि शेष 706 कर्मचारी बिना सेवा समाप्त हुए कहाँ गये? इन कर्मचारियों ने न तो वीएसएस लिया और न ही उनकी सेवा समाप्त की गयी और न ही वो फ़र्टिलाइज़र में कार्यरत हैं, और न ही इन कर्मचारियों का कोई रेकॉर्ड उपलब्ध है।

वीएसएस के बारे में सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार मन्त्रालय ने साफ़ कहा कि मन्त्रालय में वीएसएस जैसा कोई नियम है ही नहीं। इसकी जगह कर्मचारियों को सेवामुक्त होने के लिए वीआरएस 1972 से लागू है। सुप्रीम कोर्ट की फ़ाइल से प्राप्त सूचना में वीएसएस जैसा कोई नियम नहीं है, जबकि वीआरएस का प्रावधान ज़रूर है।

उद्योगों की तालाबन्दी, मज़दूरों की छँटनी जारी है

पिछले एक साल में आठ औद्योगिक इकाइयाें की आंशिक व पूर्ण बन्दी के चलते 2300 से अधिक मज़दूरों की रोज़ी-रोटी छिन गयी। जिसमें धारूहेड़ा की ओमैक्स के लगभग 250 मज़दूर, रीको ऑटो इण्डस्ट्री के 104 मज़दूर, बिनौला की ऑटोमैक्स के 150 मज़दूर, मानेसर की ओमैक्स के 500 मज़दूर, (इण्ड्युरेंस टेक्नोलॉजिस के 400 मज़दूर, डानूका ऐग्रीटेक, गुड़गाँव की नेपिनो ऑटोस एण्ड इलेक्टाॅनिस के 146 मज़दूर, एसएलआरके मज़दूरों की आंशिक व पूर्ण बन्दी के नाम पर छँटनी व तथाकथित रिटायरमेण्ट कर दी गयी है।

मजदूरों के पत्र – राजस्थान में बिजली विभाग में बढ़ता निजीकरण, एक ठेका कर्मचारी की जुबानी

निजीकरण का यह सिलसिला सिर्फ़ बिजली तक सीमित नहीं है, सभी विभागों की यही गति है। सरकारी नीतियों और राजनीति के प्रति आँख मूँदकर महज कम्पीटीशन एक्जाम की तैयारियों में लगे बेरोज़गार युवकों को ऐसे में ठहरकर सोचना-विचारना चाहिए कि जब सरकारी नौकरियाँ रहेंगी ही नहीं तो बेवजह उनकी तैयारियों में अपना पैसा और समय ख़र्च करने का क्या तुक बनता है? क्या उन्हें नौकरी की तैयारी के साथ-साथ नौकरियाँ बचाने के बारे में सोचना नहीं चाहिए? बिजली विभाग में भर्ती होने के लिए भारी फ़ीस देकर आईटीआई कर रहे लाखों नौजवानों को तो सरकार के इस फ़ैसले का त्वरित विरोध शुरू कर देना चाहिए।

ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के बीच माँगपत्रक आन्दोलन की शुरुआत

देश के विकास का बखान करते वक़्त सबसे पहले ऑटोमोबाइल पट्टी की बात आती है और हो भी क्यों न? देश के सकल घरेलू उत्पाद का क़रीब 7.1 फ़ीसदी हिस्सा ऑटोमोबाइल सेक्टर से ही आता है। ऑटोमोबाइल सेक्टर के उत्पादन का आधा से अधिक हिस्सा गुडगाँव-मानेसर-धारुहेड़ा–बावल से लेकर भिवाड़ी-ख़ुशखेड़ा-नीमराना में फैली औद्योगिक पट्टी से आता है। यह पट्टी देशी-विदेशी पूँजी के लिए अकूत मुनाफ़़ा लूटने का चारागाह है। किन्तु, यहाँ पर काम कर रहे मज़दूरों का जीवन नर्क से बदतर है। यहाँ हज़ारों कारख़ाना इकाइयों में काम कर रहे लाखों मज़दूर प्रतिदिन 10-12 घण्टा कमरतोड़ मेहनत करने के बावजूद बमुश्किल किसी तरह 8-10 हज़ार रुपये  प्रतिमाह कमा पाते हैं। काम के हालात इस तरह हैं कि मज़दूरों को एक मिनट के अन्दर 13 प्रक्रियाओं से गुज़रना होता है।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर पूँजीवादी शोषण के खि़लाफ़ संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया

इस वक़्त पूरी दुनिया में मज़दूर सहित अन्य तमाम मेहनतकश लोगों का पूँजीपतियों-साम्राज्यवादियों द्वारा लुट-शोषण पहले से भी बहुत बढ़ गया है। वक्ताओं ने कहा कि भारत में तो हालात और भी बदतर हैं। मज़दूरों को हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी इतनी आमदनी भी नहीं है कि अच्छा भोजन, रिहायश, स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि ज़रूरतें भी पूरी हो सकें। भाजपा, कांग्रेस, अकाली दल, आप, सपा, बसपा सहित तमाम पूँजीवादी पार्टियों की उदारीकरण-निजीकरण-भूमण्डलीकरण की नीतियों के तहत आठ घण्टे दिहाड़ी, वेतन, हादसों व बीमारियों से सुरक्षा के इन्तज़ाम, पीएफ़, बोनस, छुट्टियाँ, काम की गारण्टी, यूनियन बनाने आदि सहित तमाम श्रम अधिकारों का हनन हो रहा है। काले क़ानून लागू करके जनवादी अधिकारों को कुचला जा रहा है।